कॉन्सर्ट पर्यटन

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कॉन्सर्ट पर्यटन
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कॉन्सर्ट पर्यटन

संदर्भ: असम, मेघालय, तेलंगाना, गुजरात और दिल्ली समेत कई राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय संगीत कार्यक्रमों (कॉन्सर्ट) को आकर्षित करने के लिए सक्रिय रूप से नीतियाँ बना रही हैं, और उन्हें आर्थिक विकास, रजगार सृजन और ग्लोबल ब्रांडिंग के लिए एक उत्प्रेरक के तौर पर देख रही हैं।

कॉन्सर्ट पर्यटन क्या है?

  • कॉन्सर्ट पर्यटन पर्यटन उद्योग के बड़े भाग का एक विशेष खंड है, जिसमें लोग मुख्यतः किसी बड़े लाइव संगीत कार्यक्रम या महोत्सव में भाग लेने के लिए — अक्सर राज्य या राष्ट्रीय सीमाएँ पार करके — किसी गंतव्य स्थान की यात्रा करते हैं।
  • यह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को यात्रा का केन्द्रीय उद्देश्य बना देता है।
  • राज्य अब विशिष्ट नीतियां बना रहे हैं (जैसे असम और मेघालय) या आयोजकों और दर्शकों दोनों को आकर्षित करने के लिए व्यापक पर्यटन ढांचे में प्रोत्साहनों को एकीकृत कर रहे हैं।
  • इन प्रोत्साहनों में व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (वीजीएफ) जैसी वित्तीय सहायता, सुव्यवस्थित अनुमति (जैसे, शराब लाइसेंस) और स्थल किराये की दरों में कमी शामिल है, जिसका उद्देश्य वैश्विक कलाकारों के लिए खुद को आकर्षक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।

कॉन्सर्ट पर्यटन का क्या महत्व है?

  • आर्थिक गुणक: यह स्थानीय होटलों, परिवहन, खान-पान और अन्य खुदरा खरीद के लिए पर्याप्त प्रत्यक्ष (टिकट बिक्री) और अप्रत्यक्ष आय सृजित करता है। उदाहरण के लिए, मेघालय ने 2024 में ₹23.3 करोड़ के निवेश के मुकाबले ₹133 करोड़ की आय अर्जित की ।
  • रोज़गार सृजन: यह अस्थायी (आयोजन की व्यवस्था, सुरक्षा, आतिथ्य) और स्थायी (कलाकार प्रबंधन, रसद के विकसित पारिस्थितिकी तंत्र में) दोनों प्रकार रोजगार सृजित करता है।
  • डेस्टिनेशन ब्रांडिंग: पोस्ट मेलोन या कोल्डप्ले जैसे अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों की मेजबानी गुवाहाटी या अहमदाबाद जैसे शहरों को वैश्विक मानचित्र पर लाती है, उन्हें आधुनिक, सांस्कृतिक रूप से जीवंत स्थलों के रूप में प्रदर्शित करती है। यह वन्यजीव, विरासत या धार्मिक पर्यटन से परे किसी राज्य के पर्यटन पोर्टफोलियो में विविधता लाने में मदद करता है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव: यह भारतीय दर्शकों को वैश्विक संस्कृति तक पहुंच देता है, सामुदायिक अनुभव को बढ़ावा देता है, और किसी शहर या राज्य की “सॉफ्ट पावर” और सर्वदेशीय अपील को बढ़ाता है।

भारत में इसके तेजी से बढ़ने का कारण

कॉन्सर्ट पर्यटन में उछाल MICE (मीटिंग्स, इंसेंटिव्स, कॉन्फ़्रेंस और एक्ज़िबिशन) पर्यटन की वृद्धि के साथ सामंजस्यपूर्ण और पूरक रूप में विकसित हो रहा है। दोनों ही उच्च-राजस्व वाले, संगठित पर्यटन खंड हैं, जिनके प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:

  • प्रयोज्य आय को लक्षित करती है: वे बढ़ती हुई प्रयोज्य आय वाले मिलेनियल्स और जेन-जेड की बढ़ती जनसांख्यिकी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जो वस्तुओं की अपेक्षा अनुभवों पर खर्च करने को तैयार हैं।
  • नीतिगत समर्थन: MICE और कॉन्सर्ट—दोनों की सफलता काफी हद तक सरकार की सक्रिय नीतियों पर निर्भर करती है, जैसे बुनियादी ढांचे का विकास, नियमों का सरलीकरण और वित्तीय प्रोत्साहन। इसका उदाहरण विभिन्न राज्यों की BookMyShow जैसी कंपनियों के साथ हुई पर्यटन MoU साझेदारियाँ हैं।
  • बुनियादी अवसंरचना का विकास: बढ़ती मांग के कारण विश्वस्तरीय, बहुउद्देश्यीय और “प्लग-एंड-प्ले” स्थलों का निर्माण हो रहा है (जैसे बेंगलुरु में प्रस्तावित टेराफॉर्म एरीना), जिसका लाभ पूरे MICE इकोसिस्टम को मिलता है।
  • उच्च-आय वर्ग वाले पर्यटकों की बढ़ती मौजूदगी : सामान्य अवकाश पर्यटन की तुलना में, कॉन्सर्ट और MICE पर्यटक प्रति व्यक्ति अधिक खर्च करते हैं और उनकी यात्राएँ कम अवधि की लेकिन उद्देश्यपूर्ण होती हैं, जिससे वे स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत मूल्यवान बनते हैं। टियर-2 शहरों (जैसे गुवाहाटी, शिलांग) को कॉन्सर्ट गंतव्यों के रूप में विकसित करने का प्रयास, MICE गतिविधियों को पारंपरिक महानगरों से बाहर विकेन्द्रीकृत करने की रणनीति को भी दर्शाता है।

 कॉन्सर्ट पर्यटन जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

  • अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना: भारत में समर्पित, विश्वस्तरीय संगीत समारोह स्थलों का घोर अभाव है। अधिकांश कार्यक्रमों के लिए खुले मैदानों पर “शुरुआत से” मंच बनाने पड़ते हैं, जिससे असमान ज़मीन (जैसा कि मुंबई के रोलिंग लाउड में देखा गया) और सुरक्षा संबंधी खतरे जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। “प्लग-एंड-प्ले” सुविधाओं के अभाव से लागत और जटिलता बढ़ जाती है।
  • सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन: अतीत की त्रासदियाँ, जैसे 2015 में गुरुग्राम कॉन्सर्ट में अत्यधिक भीड़ के कारण हुई मृत्यु, गंभीर जोखिमों को उजागर करती हैं। चुनौतियों में अपर्याप्त भीड़ नियंत्रण, सीमित चिकित्सा सुविधाएँ और सुरक्षा प्रोटोकॉल की कमी शामिल हैं, जो भारत में अक्सर अव्यवस्थित भीड़ व्यवहार के कारण बढ़ जाते हैं।
  • “नॉस्टैल्जिया” एक्ट पर अधिक निर्भरता: वर्तमान मॉडल मुख्य रूप से उन कलाकारों पर निर्भर करता है जिनकी वैश्विक प्रसिद्धि का चरम समय बीत चुका है (जैसे अकॉन, एनरिक इग्लेसियास), और यह मिलेनियल्स की नॉस्टैल्जिया को लक्षित करता है। इससे दीर्घकालिक स्थिरता और विविध, समकालीन संगीत संस्कृति के विकास पर प्रश्न उठते हैं।
  • लॉजिस्टिक और नौकरशाही बाधाएं: आयोजकों को लालफीताशाही, अंतिम समय में परमिट समस्याएँ, मौसम पर निर्भरता (जैसे ट्रैविस स्कॉट का मुंबई कॉन्सर्ट बारिश के कारण स्थगित) और अंतरराष्ट्रीय-स्तरीय उपकरणों के परिवहन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: बड़े आयोजन अत्यधिक कचरा, ध्वनि प्रदूषण और स्थानीय संसाधनों पर दबाव उत्पन्न करते हैं। सतत आयोजन प्रथाओं की आवश्यकता है, जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है।

इन चिंताओं से निपटने के लिए संभावित उपाय

  • समर्पित बुनियादी अवसंरचना का विकास: राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र को मिलकर बहुउद्देश्यीय, विस्तार योग्य (स्केलेबल) स्थलों के निर्माण या पुराने स्थलों के उन्नयन में निवेश करना चाहिए, जहाँ उचित सुविधाएँ, सुरक्षा प्रमाणन और आसान पहुँच उपलब्ध हो। महालक्ष्मी रेसकोर्स का परिवर्तन इसी दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का मानकीकरण: बड़े आयोजनों के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सुरक्षा दिशानिर्देशों को लागू किया जाना चाहिए और उनका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित कराया जाना चाहिए। इसमें अनिवार्य भीड़ प्रबंधन योजनाएँ, प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मी और कार्यक्रम स्थल पर आपातकालीन चिकित्सा ढाँचा शामिल होना चाहिए।
  • पेशेवर इकोसिस्टम को प्रोत्साहन: इवेंट मैनेजमेंट, स्टेजक्राफ्ट और लॉजिस्टिक्स के लिए औपचारिक प्रशिक्षण और प्रमाणन कार्यक्रम विकसित करें, ताकि कुशल पेशेवर कार्यबल तैयार हो और आकस्मिक निर्भरताएँ कम हों।
  • शैली (जॉनर) और शहरों की विविधता को प्रोत्साहन: केवल नॉस्टैल्जिया आधारित आयोजन से आगे बढ़कर विविध संगीत शैलियों और स्थानीय त्योहारों (जैसे Echoes of Earth) को समर्थन दें। नीतियाँ यह प्रोत्साहित करें कि आयोजक कई शहरों में टूर करें और पैन-इंडिया संगीत सर्किट तैयार हो।
  • स्थिरता का समावेश: बड़े कॉन्सर्ट के लिए अनुमोदन प्रक्रिया में अपशिष्ट प्रबंधन, जल संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग और कार्बन ऑफसेटिंग जैसी संधारणीय प्रथाओं को अनिवार्य किया जाना चाहिए और इसके लिए प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए। 

नियामक अवसंरचना को सरल बनाना: आवश्यक परमिट प्राप्त करने के लिए सिंगल-विंडो क्लियरेंस सिस्टम और पूर्वानुमेय नियामक वातावरण तैयार करें, जिससे अंतरराष्ट्रीय आयोजकों के लिए अनिश्चितता कम हो।


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