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डिजिटल उत्पीड़न के कारण हिंसा में चिंताजनक वृद्धि

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डिजिटल उत्पीड़न के कारण हिंसा में चिंताजनक वृद्धि
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डिजिटल उत्पीड़न के कारण हिंसा में चिंताजनक वृद्धि

संदर्भ: संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) की नवीनतम रिपोर्ट (दिसंबर 2025) में महिला पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ डिजिटल दुर्व्यवहार में वैश्विक स्तर पर तेज़ वृद्धि को उजागर किया गया है। दो-तिहाई से अधिक महिलाओं को ऑनलाइन हमलों का सामना करना पड़ा है और 41% महिलाओं ने इस तरह के दुर्व्यवहार से जुड़े वास्तविक दुनिया में नुकसान की सूचना दी है। 

डिजिटल उत्पीड़न क्या है?

  • डिजिटल उत्पीड़न से तात्पर्य तकनीक—सोशल मीडिया, एआई टूल्स, मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म और डिजिटल निगरानी—का उपयोग करके व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और कमजोर समुदायों, को परेशान करने, धमकाने, बदनाम करने या चुप कराने से है।
  • UN वुमन ऑनलाइन हिंसा को ऐसा व्यवहार मानती है जिसका उद्देश्य डिजिटल माध्यमों से किसी को “अपमानित करना, नियंत्रित करना या मजबूर करना” हो। इसमें साइबरस्टॉकिंग, डॉक्सिंग, प्रतिरूपण (इम्पर्सनेशन), डीपफेक और समन्वित ट्रोलिंग शामिल हैं।

डिजिटल उत्पीड़न के प्रकार

    • उत्पीड़न और धमकी: लक्षित दुर्व्यवहार अभियान, ट्रोलिंग, घृणास्पद भाषण, बलात्कार की धमकी, और एक्स, इंस्टाग्राम, और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर समन्वित हमले।
  • तस्वीरों के साथ छेड़छाड़: एआई-निर्मित डीपफेक पोर्नोग्राफी, परिवर्तित (morphed) तस्वीरें और फर्जी वीडियो—जिसे 2025 की संयुक्त राष्ट्र महिला रिपोर्ट में लिंग आधारित दुर्व्यवहार के सबसे तेज़ी से बढ़ते साधनों में से एक बताया गया है।
  • डॉक्सिंग और निजी डेटा का प्रकटीकरण: घर का पता, फोन नंबर जैसे व्यक्तिगत विवरणों को सार्वजनिक करना। यूएन वुमन (2025) के अनुसार “स्वाटिंग”—यानी झूठी आपातकालीन सूचनाएँ देकर किसी पर दबाव बनाना—जैसी तकनीकें वैश्विक स्तर पर तेज़ी से बढ़ी हैं।
  • निगरानी और हैकिंग: पेगासस जैसे स्पाइवेयर हमले, पासवर्ड चोरी, और अनधिकृत मॉनिटरिंग।
  • समन्वित दुष्प्रचार: संगठित समूहों द्वारा महिला पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और असहमत आवाज़ों को बदनाम करने के लिए झूठी कहानियाँ गढ़ना।

यह एक चिंता का विषय क्यों है?

  • ऑनलाइन से वास्तविक दुनिया तक हानि का प्रसार: यूएन वुमन की 2025 की रिपोर्ट दर्शाती है कि 41% महिला पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को ऑनलाइन दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप शारीरिक अथवा ऑफ़लाइन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। यह दर्शाता है कि डिजिटल हिंसा वास्तविक जीवन में भी सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करती है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दमनकारी प्रभाव: डिजिटल हिंसा महिलाओं को स्वयं सेंसरशिप अपनाने के लिए मजबूर करती है, जिससे सार्वजनिक विमर्श में विचारों की विविधता कम हो जाती है। UNESCO की 2021 रिपोर्ट ने इसे लोकतांत्रिक सहभागिता पर पड़ने वाले “मौन प्रभाव” (Silencing Effect) के रूप में चिह्नित किया है।
  •  एआई-संचालित महिला-विरोधी प्रवृत्तियों का बढ़ना: प्रमुख शोधकर्ता जूली पोसेटी के अनुसार, “मैनोस्फीयर” और लिंगभेदी सामग्री का अल्गोरिथम चालित प्रवर्धन कट्टरता को बढ़ावा देते हैं। डीपफेक भी सत्यापन को कठिन बनाते हैं, जिससे जनता का विश्वास कम होता है।
  • आर्थिक और मनोवैज्ञानिक लागत: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, साइबर अपराध से उत्पादकता में कमी आती है और क़ानून-व्यवस्था तंत्र पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। डिजिटल दुर्व्यवहार मानसिक तनाव बढ़ाता है और कई महिलाओं को अपने पेशेवर दायित्वों से पीछे हटने के लिए विवश कर देता है।

डिजिटल उत्पीड़न में कमज़ोर समूहों को ही क्यों लक्षित किया जाता है?(रिपोर्ट पर आधारित)

  • महिला पत्रकार, कार्यकर्ता और अधिकार रक्षक अधिक दृश्यमान और मुखर होती हैं: 119 देशों के 6,900 प्रतिभागियों के उत्तर पर आधारित संयुक्त राष्ट्र महिला के 2025 के सर्वेक्षण में पाया गया कि सार्वजनिक भूमिकाओं में दो-तिहाई से अधिक महिलाओं को अपने विचारों के कारण नियमित रूप से डिजिटल दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है जो पितृसत्तात्मक और राजनीतिक संरचनाओं को चुनौती देते हैं।
  • संरचनात्मक लैंगिक मानदंड: राजनीति, मीडिया और अधिकार संबंधी मुद्दों में अधिकार जताने वाली महिलाओं को लक्षित महिला-विरोधी व्यवहार का सामना करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र महिला इसे “डिजिटल पितृसत्ता” (digital patriarchy) के रूप में परिभाषित करता है।
  • राजनीतिक और प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा लक्षित करना: रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रभावशाली नेताओं, जिनमें राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल हैं, द्वारा किए गए हमले ऑनलाइन भीड़ के व्यवहार को खुले तौर पर वैध बनाते हैं—”यह एक छिपा हुआ संकेत नहीं, बल्कि एक खुला हमला है।” 
  • तकनीकी विषमता: साइबर सुरक्षा भूमिकाओं में कम प्रतिनिधित्व और डिजिटल साक्षरता तक सीमित पहुँच के कारण महिलाएँ पहचान की चोरी, डीपफेक, अनैच्छिक छवियों का शिकार होने की अधिक संभावना रखती हैं (भारत के NFHS-5 में उल्लेख किया गया है कि केवल ~33% महिलाओं के पास बुनियादी डिजिटल पहुंच थी)।
  • मानवाधिकार रक्षकों के खिलाफ हथियार के रूप में उपयोग: दुर्व्यवहार, संघर्ष, या शासन की विफलताओं के विरुद्ध आवाज उठाने वाली महिलाओं और उनके काम को व्यवस्थित रूप से चुप कराने के लिए निशाना बनाया जाता है। 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, यह पैटर्न पाँच वर्षों में दोगुना हो गया है।

निपटने के लिए उठाए गए कदम

  • भारत में

  • कानूनी उपाय 

        • आई टी अधिनियम (धारा 66E, 67, 69A): अश्लील सामग्री, निजता उल्लंघन और सामग्री हटाने की शक्तियों से संबंधित है।
        • दंड विधि (संशोधन) अधिनियम 2013: साइबरस्टॉकिंग और वॉयूरिज़्म को शामिल करता है।
        • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: अनधिकृत डेटा प्रोसेसिंग के लिए दंड का प्रावधान करता है।
  • संस्थागत उपाय

        • ऑनलाइन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) साइबर सेल
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) और राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (2019)।

        • साइबर सुरक्षित भारत पहल जो साइबर स्वच्छता (cyber hygiene) में सुधार कर रही है।
        • भारत एआई और डीपफेक नियमन (2025 में जारी): सिंथेटिक मीडिया से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए मसौदा दिशा-निर्देश।
  • केस स्टडीज

        • दिल्ली पुलिस की साइबर प्रिवेंशन अवेयरनेस डिटेक्शन (CyPAD) इकाई ने हज़ारों डीपफेक और मॉर्फ्ड सामग्री को सफलतापूर्वक हटाया है। 
        • कई राज्य (केरल, कर्नाटक) महिलाओं को लक्षित करके डिजिटल साक्षरता अभियान चलाते हैं।
  • वैश्विक कदम 

  • संयुक्त राष्ट्र की पहलें 

        • यूएन वुमन की ऑनलाइन हिंसा हेतु रूपरेखा(2024-25): इसमें सार्वभौमिक परिभाषाएँ, सीमा पार सहयोग और प्लेटफ़ॉर्म जवाबदेही की अनुशंसा की गई है।
        • यूनेस्को के इंटरनेट फ़ॉर ट्रस्ट दिशानिर्देश (2023): ऑनलाइन दुष्प्रचार का प्रतिरोध सुनिश्चित करते हैं।
  • प्लेटफ़ॉर्म जवाबदेही

    यूरोपीय संघ का डिजिटल सेवा अधिनियम (DSA) (2024): अवैध सामग्री को तेज़ी से हटाने और एल्गोरिद्मिक पारदर्शिता को अनिवार्य बनाता है।

  • देशों के स्तर पर प्रतिक्रियाएं 

      • ऑस्ट्रेलिया का eSafety कमिश्नर अपमानजनक सामग्री और डीपफेक को हटाने के लिए प्रवर्तन-सक्षम तंत्र संचालित करता है।

कनाडा का ऑनलाइन हार्म्स एक्ट ऑनलाइन लैंगिक-आधारित हिंसा से सुरक्षा पर केंद्रित है।


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The Source’s Authority and Ownership of the Article is Claimed By THE STUDY IAS BY MANIKANT SINGH

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