aviator

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन

  • 0
  • 3015
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन
Font size:
Print

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन

संदर्भ: दक्षिण एशिया में प्रमुख क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क), भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार तनाव के कारण 2014 से प्रभावी रूप से निष्क्रिय पड़ा है।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) क्या है?

  • सार्क एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 8 दिसंबर 1985 को ढाका में इसके चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। 
    • इसका मुख्यालय नेपाल के काठमांडू में स्थित है।
  • सदस्य देश: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, और श्रीलंका। 
  • इस संगठन की परिकल्पना दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के बीच आर्थिक और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग स्थापित करने और आपसी विश्वास को बढ़ाने के लिए की गई थी।
  • इसका सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय राष्ट्राध्यक्षों या शासनाध्यक्षों का शिखर सम्मेलन होता है, लेकिन 2014 के बाद से कोई शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं हुआ है, जिसके कारण यह संगठन काफी हद तक निष्क्रिय बना हुआ है।

इसकी स्थापना के कारण 

सार्क की स्थापना निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्यों के लिए की गई थी—

  • दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए।
  • आर्थिक वृद्धि, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास को तेज़ करने के लिए।
  • क्षेत्रीय देशों के बीच सामूहिक आत्मनिर्भरता को मजबूत करने के लिए।
  • आपसी विश्वास, समझ और एक-दूसरे की समस्याओं की पहचान को बढ़ावा देने के लिए।
  • समान हित के मुद्दों पर अन्य विकासशील देशों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मंचों में भी सहयोग को मज़बूत करने के लिए।
  • समान उद्देश्य वाले अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए। 
  • इसकी मूल भावना यह थी कि गरीबी, अविकसितता और ऐतिहासिक राजनीतिक तनावों से जूझ रहे दक्षिण एशिया में संवाद और सहयोग का एक संस्थागत मंच विकसित किया जाए।

सार्क से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

SAARC के साथ सबसे प्रमुख और लगातार बनी रहने वाली चिंता “भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय विवाद” रही है,  जिसने बहुपक्षीय सहयोग को हमेशा प्रभावित किया। SAARC की कार्यप्रणाली सर्वसम्मति के सिद्धांत पर आधारित है, यानी कोई भी सदस्य देश (अक्सर भारत या पाकिस्तान) किसी पहल को रोक सकता है। प्रमुख चिंताएँ इस प्रकार हैं—

  • राजनीतिक गतिरोध: सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर मुद्दे ने कई बार शिखर सम्मेलनों को बाधित किया और ठोस प्रगति को रोका। 2016 के उरी हमले के बाद भारत और अन्य देशों ने इस्लामाबाद सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिससे उच्चस्तरीय वार्ता पूरी तरह ठप हो गई।
  • सीमित आर्थिक एकीकरण: दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) जैसी पहलें राजनीतिक अविश्वास, बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था और गैर-शुल्क बाधाओं (non-tariff barriers) के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं ला सकीं।
  • असमानता और अविश्वास: भारत के आकार और आर्थिक प्रभुत्व (क्षेत्र की GDP और जनसंख्या का 70% से अधिक) के कारण कभी-कभी छोटे पड़ोसी देशों में सत्तात्मक प्रभुत्व का आभास हुआ। पाकिस्तान ने इसे अक्सर SAARC में भारत विरोधी गठबंधन बनाने के लिए प्रयोग किया।
  • धीमी कार्यान्वयन प्रक्रिया: नौकरशाही में देरी और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण पहले से स्वीकृत परियोजनाओं को लागू करना भी बाधित रहा।

BIMSTEC कैसे एक प्रमुख सहयोग मंच बना?

SAARC की विफलता के बाद, भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों ने बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) की ओर रुख किया। 1997 में स्थापित यह समूह पाँच SAARC सदस्य देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका) और दो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (म्यांमार और थाईलैंड) को शामिल करता है। BIMSTEC ने प्रमुख वैकल्पिक मंच के रूप में गति इसलिए पकड़ी क्योंकि-

  • भारत-पाकिस्तान तनाव से अलगाव: पाकिस्तान की अनुपस्थिति के कारण, यह समूह उन द्विपक्षीय विवादों से मुक्त है जिन्होंने सार्क को निष्क्रिय कर दिया था।
  • क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान: BIMSTEC के एजेंडे में सुरक्षा, कनेक्टिविटी, व्यापार, ऊर्जा सहित 14 प्राथमिकता वाले क्षेत्र शामिल हैं, जिन पर केंद्रित होकर परियोजना-आधारित प्रगति संभव हुई है।
  • भू-रणनीतिक महत्व: यह दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक सेतु का काम करता है, जो भारत की “एक्ट ईस्ट” नीति और थाईलैंड की “लुक वेस्ट” नीति के साथ संरेखित होता है, जिससे इस मंच का रणनीतिक महत्व बढ़ा है।
  • नवीनीकृत राजनीतिक प्रतिबद्धता: 2014 के बाद से नियमित शिखर सम्मेलनों और मंत्री स्तरीय बैठकों, जिसमें 2022 में BIMSTEC चार्टर को अपनाया जाना शामिल है, ने मजबूत और सतत राजनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाया है।

पाकिस्तान के ‘BIMSTEC मोमेंट’ का भविष्य

भारत को बाहर रखते हुए चीन-केंद्रित एक नया क्षेत्रीय मंच बनाने की पाकिस्तान की कोशिश को उसका “BIMSTEC मोमेंट” कहा जा रहा है, लेकिन यह कई कारणों से मूल रूप से त्रुटिपूर्ण है और इसके असफल होने की संभावना है: 

  • भारत की अत्यधिक केंद्रीयता: भारत दक्षिण एशिया का भौगोलिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय केंद्र है। इसकी अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की तुलना में लगभग 12 गुना बड़ी है, और इसका बाज़ार किसी भी सार्थक क्षेत्रीय आर्थिक पहल के लिए अपरिहार्य है। भारत को बाहर रखने से किसी भी मंच की आर्थिक क्षमता गंभीर रूप से सीमित हो जाती है।
  • प्रस्तावित सदस्यों के बीच सामंजस्य का अभाव: प्रस्तावित समूह (पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन आदि) में एक प्राकृतिक भौगोलिक या आर्थिक सुसंगति की कमी है। बांग्लादेश के प्राथमिक आर्थिक और कनेक्टिविटी हित पाकिस्तान या भीतरी चीन के बजाय भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया से गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं। बांग्लादेश को भारत-विरोधी गुट में धकेलने पर ढाका के लिए उच्च राजनीतिक और आर्थिक लागत आएगी।
  • चीन की केंद्रीय भूमिका: इस मंच के वास्तव में दक्षिण एशियाई सहयोग की बजाय चीन की रणनीतिक प्राथमिकताओं (जैसे CPEC) का विस्तार बनने की आशंका है। इससे ऋण निर्भरता बढ़ सकती है और छोटे सदस्यों की संप्रभुता कमज़ोर हो सकती है, जिससे वे हिचकिचा सकते हैं।
  • मौजूदा क्षेत्रीय ढांचे को कमजोर करना: यह प्रयास एक कार्यात्मक सहयोग तंत्र की बजाय भारत को अलग-थलग करने के राजनीतिक दाँव के रूप में अधिक देखा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि भारत इसका सक्रिय रूप से विरोध करेगा और बांग्लादेश जैसे भागीदारों को पुनर्विचार के लिए प्रोत्साहित करेगा। स्थायी क्षेत्रीयता क्षेत्र के सबसे बड़े हितधारक को बाहर करके नहीं बनाई जा सकती।

विशेषज्ञों का संदेह: स्वर्ण सिंह और राबिया अख्तर जैसे विश्लेषकों का मानना है कि यह योजना “व्यावहारिक से अधिक आकांक्षात्मक” है, और इसकी व्यवहार्यता इस बात पर निर्भर करती है कि क्या यह भारत के संबंध में राजनीतिक लागतों को जन्म देती है—जो कि यह अनिवार्य रूप से करेगी।


Subscribe to our Youtube Channel for more Valuable Content – TheStudyias

Download the App to Subscribe to our Courses – Thestudyias

The Source’s Authority and Ownership of the Article is Claimed By THE STUDY IAS BY MANIKANT SINGH

Share:
Print
Apply What You've Learned.
डिजिटल उत्पीड़न के कारण हिंसा में चिंताजनक वृद्धि
Previous Post डिजिटल उत्पीड़न के कारण हिंसा में चिंताजनक वृद्धि
Next Post Top 10 Non Gamstop Betting Sites for UK Players 2026
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
The Study IAS - Footer
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x