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नक्सलवाद में कमी : भारत की सकारात्मक प्रगति

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नक्सलवाद में कमी : भारत की सकारात्मक प्रगति
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नक्सलवाद में कमी : भारत की सकारात्मक प्रगति

संदर्भ: संसद में प्रस्तुत हालिया आंकड़ों के अनुसार 2010 से माओवादी हिंसा में 89% की कमी आई है। अब केवल 3 जिलों को ही “अत्यधिक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित (Most LWE Affected)” जिलों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

नक्सलवाद

  • परिभाषा और उत्पत्ति: नक्सलवाद भारत में धुर-वामपंथी कट्टर कम्युनिस्ट आंदोलन को संदर्भित करता है, जो माओवादी विचारधारा से प्रेरित है और सशस्त्र क्रांति का समर्थन करता है 
    • इसकी उत्पत्ति 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में हुए किसान विद्रोह से हुई, जिसका नेतृत्व चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने किया। 
    • समय के साथ यह आंदोलन संगठित होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के रूप में उभरा, जिसे UAPA, 1967 के तहत एक आतंकी संगठन घोषित किया गया है।
  • भौगोलिक प्रसार: नक्सली उग्रवाद का प्रसार तथाकथित “रेड कॉरिडोर” में हुआ, जिसमें मुख्यतः छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार और आंध्र प्रदेश के घने वन क्षेत्र और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े इलाके शामिल हैं। 
    • गृह मंत्रालय (MHA) के 2025 के अद्यतन के अनुसार, वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित जिलों की संख्या 2010 के 126 जिलों से घटकर 2025 में केवल 11 रह गई है, जिनमें से केवल तीन जिलों को “अत्यधिक प्रभावित” श्रेणी में रखा गया है।

नक्सलवाद के प्रमुख कारण

  • ऐतिहासिक भूमि अपवंचना: औपनिवेशिक वन कानूनों और स्वतंत्रता पश्चात भूमि सुधारों ने अक्सर आदिवासी समुदायों को नज़रअंदाज़ किया। 
    • इससे विस्थापन, भूमि और पारंपरिक संसाधनों पर नियंत्रण अधिकारों में कमी आई। 
    • बंद्योपाध्याय समिति (2006) ने भी भूमि वंचना को नक्सलवाद का सबसे बड़ा मूल कारण बताया है।
  • सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन: इन क्षेत्रों में बुनियादी सेवाओं, जैसे – सड़कें, स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ, सिंचाई, बैंकिंग, बाज़ार आदि का अभाव था। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2017–18 के अनुसार, LWE-प्रभावित जिले मानव विकास सूचकांकों में देश के सबसे कमजोर जिलों में थे।
  • प्रशासनिक उदाशीनता: सार्वजनिक वितरण प्रणाली, वनाधिकार कानून (FRA 2006) और कल्याण योजनाओं के कमजोर क्रियान्वयन से असंतोष बढ़ा। 
    • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA 1996) से पहले अनुसूचित क्षेत्रों में निर्वाचित संस्थाओं की अनुपस्थिति ने राजनीतिक उपेक्षा को बढ़ावा दिया।
  • ठेकेदारों और बिचौलियों द्वारा शोषण: अवैध खनन, लकड़ी की तस्करी और मजदूरी शोषण ने आदिवासी और वनवासियों में असंतोष बढ़ाया, जिसने माओवादी लामबंदी के लिए उपयुक्त आधार तैयार किया।
  • पहचान और सांस्कृतिक असुरक्षा: खनन, बांधों और उद्योग परियोजनाओं के चलते जबरन विस्थापन ने आदिवासियों में पहचान और सांस्कृतिक असुरक्षा को गहरा किया और माओवादियों ने स्वयं को “रक्षक” की भूमिका में पेश कर समर्थन प्राप्त किया।

नक्सलवाद के उदय और विस्तार के प्रमुख कारक

  • वनक्षेत्र और गतिशीलता : बस्तर, अबूझमाड़ और दंडकारण्य के घने वन प्राकृतिक आड़ प्रदान करते थे। माओवादियों ने इन्हीं क्षेत्रों में अपने आधार-क्षेत्र विकसित किए और समानांतर शासन संरचनाएँ (“जनताना सरकारें”) स्थापित कीं।
  • संगठित कैडर संरचना: सीपीआई (माओवादी) ने एक सुव्यवस्थित सैन्य शाखा (PLGA) विकसित की, जिसमें युवाओं की लगातार भर्ती, प्रशिक्षण और वैचारिक अनुशासन (इंडॉक्ट्रिनेशन) शामिल था।
  • प्रारंभ में राज्य की कमजोर उपस्थिति: पुलिस प्रशासन की सीमित पहुँच, स्थानीय पुलिस की कमी और अवसंरचना निर्माण में देरी ने माओवादियों को 1990–2000 के दशक में फैलने का अवसर दिया।
  • वित्तीय संसाधनों की प्रचुरता: कर, जबरन वसूली, अवैध खनन, और तेंदू पत्ता व्यापार पर नियंत्रण से भारी धन अर्जित किया गया। इससे हथियार, भर्तियाँ और संगठन का विस्तार संभव हुआ।
  • औपचारिक राजनीति से मोहभंग: भ्रष्टाचार, चुनावी हिंसा और आदिवासी समुदाय की सीमित राजनीतिक भागीदारी ने उग्रवादी कथा को बल दिया और माओवादियों को वैकल्पिक शक्ति के रूप में उभरने का अवसर मिला।

नक्सलवाद पर नियंत्रण के प्रयास

  • सुरक्षा उपाय

  • लक्षित अभियान

        • ग्रेहाउंड्स, कोबरा कमांडो तथा राज्यों की विशेष पुलिस इकाइयों—विशेषतः आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़—द्वारा चलाए गए अभियानों ने माओवादी नेतृत्व संरचना को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
        • गृह मंत्रालय (2025) के अनुसार: 2010 की तुलना में हिंसा में 89% की गिरावट, नागरिकों/सुरक्षा बलों की मृत्यु में 91% कमी तथा 2025 में कुल 2,167 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया।
  • SAMADHAN सिद्धांत

        • एक संपूर्ण सरकारी रणनीति जिसमें शामिल है:
        • स्मार्ट नेतृत्व, आक्रामक रणनीति, प्रेरणा, प्रभावी खुफिया जानकारी, डैशबोर्ड-आधारित KPI मॉनिटरिंग, तकनीक का उपयोग, क्षेत्र-विशेष कार्ययोजनाएँ और माओवादियों की वित्तीय पहुँच को समाप्त करना सम्मिलित है। 
  • तकनीकी और अवसंरचनात्मक हस्तक्षेप

        • LWE मोबाइल टावर परियोजना: दूरस्थ क्षेत्रों में टेलीकॉम पहुँच बढ़ाना।
        • RCPLWE (सड़क संपर्क परियोजना): नक्सल-प्रभावित इलाकों में सड़क नेटवर्क मजबूत करना।
        • मजबूत पुलिस थाने एवं SIS: सुरक्षा उपस्थिति बढ़ाना और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता विकसित करना।
  • विकास व शासन-आधारित दृष्टिकोण

  • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, रोजगार और वित्तीय समावेशन पर केंद्रित सुधार, जिन्हें नीति आयोग ने सेवा-प्रदायन में सुधार के लिए प्रभावी माना है।
  • भूमि और वन शासन सुधार
        • वनाधिकार अधिनियम (FRA), 2006: व्यक्तिगत एवं सामुदायिक वन अधिकारों की मान्यता।
        • PESA, 1996 का प्रभावी कार्यान्वयन: अनुसूचित क्षेत्रों में सहभागितापूर्ण शासन को बढ़ावा।
  •  शिक्षा और आजीविका हस्तक्षेप
        • LWE प्रभावित ब्लॉकों में 130 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय संचालित
        • रोशनी (ROSHNI) — 27 LWE जिलों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण
        • मनरेगा (MGNREGA) — रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित करना।  
  • आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियाँ
      • आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की योजनाएँ – आर्थिक सहायता, आवास समर्थन, आजीविका सहायता, कानूनी सुरक्षा प्रदान करती हैं। 
      • इन नीतियों ने विशेषकर मध्यम स्तर के माओवादी कैडरों को हथियार छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया है।
  • सिविल सोसाइटी एवं संवाद-आधारित पहल:
    • नेपाल और कोलंबिया के अध्ययनों से स्पष्ट है कि दीर्घकालिक शांति राजनीतिक एकीकरण से ही संभव है।
    • नागरिक समाज संगठनों (CSOs) ने आदिवासियों और प्रशासन के बीच विश्वास बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे अलगाव कम हुआ।

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