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प्लास्टिक प्रदूषण

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प्लास्टिक प्रदूषण
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प्लास्टिक प्रदूषण

संदर्भ: प्यू चैरिटेबल ट्रस्ट्स और अंतरराष्ट्रीय शोध साझेदारों द्वारा तैयार की गई नई वैश्विक आकलन रिपोर्ट “ब्रेकिंग द प्लास्टिक वेव 2025 – एन असेसमेंट ऑफ द ग्लोबल सिस्टम एंड स्ट्रैटेजीज फ़ॉर ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज” चेतावनी देती है कि यदि वैश्विक स्तर पर महत्वाकांक्षी कदम नहीं उठाए गए, तो प्लास्टिक प्रदूषण 2025 के 130 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2040 तक 280 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक हो सकता है। 

प्लास्टिक प्रदूषण क्या है?

  • प्लास्टिक प्रदूषण का अर्थ है—पर्यावरण (भूमि, वायु, जल) में प्लास्टिक उत्पादों का अत्यधिक संचय, जो पारिस्थितिक तंत्र, वन्यजीव और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • प्लास्टिक अविघटनीय होते हैं और सदियों तक पर्यावरण में बने रहते हैं। ये टूटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाते हैं, जो खाद्य श्रृंखला, मिट्टी और मानव शरीर तक में पहुंच जाते हैं। 
  • चूँकि अधिकांश प्लास्टिक जीवाश्म ईंधनों से बनते हैं, इसलिए इनका उत्पादन और निपटान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में अत्यधिक योगदान देता है।

प्रमुख कारण

  • अत्यधिक उत्पादन और उपभोग: वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन 2025 में 450 मिलियन टन से बढ़कर 2040 में 680 मिलियन टन होने का अनुमान है। पैकेजिंग और वस्त्र उद्योग इसमें सबसे तेजी से योगदान देने वाले क्षेत्र हैं।
  • टायर घिसावट और पेंट—प्रत्येक से लगभग 10 मिलियन टन, कृषि क्षेत्र से 3 मिलियन टन, तथा पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं से 2 मिलियन टन सूक्ष्म प्लास्टिक उत्पन्न होते हैं।
  • जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता: प्लास्टिक मुख्यतः पेट्रो-रसायनों से निर्मित होते हैं, इसलिए इनका संबंध प्रत्यक्ष रूप से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन से है, जो वर्ष 2040 तक 4.2 गीगाटन CO₂-समतुल्य तक पहुँचने का अनुमान है।
  • कमजोर अपशिष्ट प्रबंधन: प्लास्टिक उत्पादन जिस गति से बढ़ रहा है (52%), उसकी तुलना में अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता केवल 26% की दर से बढ़ रही है। 
  • औद्योगिक और उपभोक्ता व्यवहार: सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का व्यापक उपयोग, अपर्याप्त पुनर्चक्रण व्यवस्था और उद्योगों से अनियंत्रित प्रदूषण उत्सर्जन—ये सभी प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं।

प्रमुख प्रभाव

  • पर्यावरणीय प्रभाव: प्लास्टिक प्रदूषण समुद्री पारितंत्रों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। समुद्री जीवों द्वारा प्लास्टिक का निगलना और उसमें फँस जाना जैवविविधता के लिए बड़ा ख़तरा बन गया है। इसके साथ ही, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट और मीठे जल स्रोतों का प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन: प्लास्टिक से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वर्ष 2040 तक 58% तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु संकट और अधिक गहरा होगा।
  • स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव:
    • प्लास्टिक और सूक्ष्म प्लास्टिक मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम जिनमें—कैंसर, हृदय रोग, अस्थमा, बांझपन, संज्ञानात्मक ह्रास से जुड़ा जोखिम सम्मिलित हैं-उत्पन्न करते हैं
    • प्लास्टिक में 16,000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 25% हानिकारक माने गए हैं।
    • अनुमान है कि वर्ष 2040 तक इनके कारण 9.8 मिलियन स्वस्थ जीवन-वर्ष (Healthy Life Years) वैश्विक स्तर पर नष्ट हो सकते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: 2040 तक कचरा प्रबंधन की वार्षिक लागत 140 अरब डॉलर  तक पहुँच सकती है। यह सरकारों और उद्योगों के लिए यक भारी वित्तीय जोखिम पैदा कर सकता है। 

भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदम 

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (संशोधित 2022)
    • उत्पादकों पर विस्तारित उत्पादक दायित्व (EPR)
    • एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध (जुलाई 2022 से)
  • स्वच्छ भारत मिशन : जन-जागरूकता और प्लास्टिक संग्रह अभियान। 
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT): प्लास्टिक के अवैध उपयोग पर कार्रवाई और प्रतिबंधों के सख्त प्रवर्तन के आदेश। 
  • राज्य स्तरीय पहलें: महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर सख्त प्रतिबंध। 
  • पुनर्चक्रण और विकल्प: जैव-अपघटनीय पैकेजिंग, खाद बनाने योग्य प्लास्टिक और चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को बढ़ावा। 
  • जागरूकता और सफाई अभियान: नदी और समुद्र तट सफाई, नमामि गंगे और तटीय मिशनों को प्लास्टिक प्रदूषण की कमी से जोड़ा जाना।

वैश्विक प्लास्टिक संधि 

  • ग्लोबल प्लास्टिक संधि एक प्रस्तावित, संयुक्त राष्ट्र-नेतृत्वित, कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को उसके पूरे जीवनचक्र—उत्पादन से लेकर निपटान तक—नियंत्रित करना है।
  • अधिदेश : यह संधि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) के तहत वर्ष 2022 से वार्ताओं के रूप में आगे बढ़ रही है।
  • कार्य-क्षेत्र:
    • प्लास्टिक उत्पादन और उपभोग में कमी लाना।
    • प्लास्टिक में उपयोग होने वाले हानिकारक रसायनों पर प्रतिबंध/नियमन।
    • माइक्रोप्लास्टिक और समुद्री कचरे से निपटना।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) और सतत विकल्पों को बढ़ावा देना।
  • स्थिति: वार्ताएँ जारी हैं (INC-5, जिनेवा और बुसान, 2025), लेकिन अभी तक सर्वसम्मति नहीं बन पाई है।

इससे जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • विभिन्न देशों के अलग-अलग हित: तेल-उत्पादक देश प्लास्टिक उत्पादन पर किसी भी सीमा का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह पेट्रोकेमिकल उद्योग से जुड़ा है। दूसरी ओर, विकासशील देशों को अनुपालन लागत और आजीविका पर प्रभाव की चिंता है।
  • कार्यान्वयन चुनौतियाँ: कई देशों में प्रवर्तन तंत्र कमजोर है। ग्लोबल साउथ में पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पर्याप्त अवसंरचना नहीं है।
  • समानता और न्याय का मुद्दा: यह आशंका है कि कठोर नियमों का बोझ गरीब देशों पर अधिक पड़ेगा, जबकि समृद्ध देश उच्च उपभोग जारी रखेंगे। विकासशील देशों के लिए वित्तीय व तकनीकी सहायता अनिवार्य है।
  • उद्योुंगों का प्रतिरोध: प्लास्टिक और पेट्रोकेमिकल उद्योग उत्पादन-सीमा जैसे कड़े प्रावधानों के खिलाफ लॉबिंग कर रहे हैं।
  • संधि के दायरे को लेकर विवाद: यह प्रमुख विवाद है कि संधि का फोकस केवल अपशिष्ट प्रबंधन पर होना चाहिए या फिर प्लास्टिक उत्पादन में कमी को भी केंद्रीय हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

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