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भारत – पाकिस्तान संबंध
भारत – पाकिस्तान संबंध
संदर्भ: पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ के आने और इस्लामाबाद की ओर से बढ़ती बयानबाजी के बाद पाकिस्तान की आंतरिक शक्ति संतुलन की नए सिरे से जांच के बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया टिप्पणियों ने शत्रुता और सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तानी सेना की स्थायी भूमिका पर भारत के राजनयिक रुख को और तीक्ष्ण कर दिया है।
भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दे:
- पाकिस्तान का सुरक्षा सिद्धांत और सीमा–पार आतंकवाद को समर्थन: भारत–पाक संबंधों में तनाव का प्रमुख कारण पाकिस्तान का सैन्य–प्रधान सुरक्षा सिद्धांत है, जो आतंकवाद को राज्य नीति के उपकरण के रूप में उपयोग करता है।
- भारत ने बार-बार पाकिस्तान स्थित समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद द्वारा हमलों को अंजाम देने के साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं (जैसे, 2001 संसद हमला, 2008 मुंबई, 2016 उरी, 2019 पुलवामा, 2025 पहलगाम )।
- जयशंकर के हालिया बयान इस दीर्घकालिक स्थिति को दोहराते हैं कि पाकिस्तानी सेना विचारधारात्मक और परिचालन—दोनों स्तरों पर—भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण बनी हुई है।
- कश्मीर विवाद और क्षेत्रीय दावे: विलय पत्र (1947) और संसद के 1994 के प्रस्ताव के माध्यम से बार-बार पुष्टि किए जाने के बावजूद, पाकिस्तान कश्मीर को “विभाजन का अधूरा काम” बताता रहता है। पाकिस्तान द्वारा पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान में क्षेत्रीय नियंत्रण को बदलने के प्रयासों से यह विवाद और भी बढ़ गया है।
- दो-राष्ट्र सिद्धांत पर आधारित वैचारिक विभाजन: पाकिस्तान की राज्य-वैचारिकी अब भी दो-राष्ट्र सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अनुसार हिंदू और मुसलमान दो असंगत, अलग-अलग राष्ट्र हैं। इसके विपरीत, भारत नागरिक और संवैधानिक राष्ट्रवाद पर आधारित है। यह मूलभूत वैचारिक टकराव दोनों देशों के बीच रणनीतिक अविश्वास को गहरा करता है।
- सियाचिन–सर क्रीक–जल बँटवारा संबंधी मुद्दे:
- सियाचिन: भारत सामरिक नियंत्रण हेतु सॉल्टोरो रिज पर तैनात है; पाकिस्तान बिना वर्तमान सैन्य तैनाती के आधिकारिक प्रमाणीकरण के निरस्त्रीकरण (demilitarisation) की माँग करता है।
- सर क्रीक: 96 किमी का समुद्री सीमा विवाद, जो दोनों देशों के EEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र) दावों को प्रभावित करता है।
- जल: यद्यपि सिंधु जल संधि (1960) युद्धों और तनावों के बावजूद कायम रही है, फिर भी भारत की जलविद्युत परियोजनाओं (जैसे किशनगंगा, राटले) को लेकर मतभेद बने हुए हैं।
यह एक पुरानी समस्या क्यों बन गई है?
- पाकिस्तान की राजनीति में सेना की प्रभुत्वपूर्ण भूमिका: 1958 से ही पाकिस्तान की विदेश और सुरक्षा नीति पर सेना का नियंत्रण रहा है। नागरिक सरकारों के पास स्थायी रूप से वार्ता चलाने की स्वायत्तता नहीं होती। जैसा कि जयशंकर ने कहा है, सेना की “वैचारिक शत्रुता” इस संघर्ष को लगातार बनाए रखती है।
- पाकिस्तान में भौगोलिक (territorial) राष्ट्रवाद का अभाव: पाकिस्तान अब भी धर्म-आधारित राष्ट्रवाद से भौगोलिक राष्ट्रवाद की ओर नहीं बढ़ पाया है, जिससे सामंजस्य स्थापित करना कठिन हो जाता है।
- भारत-विरोधी नैरेटिव की सामरिक उपयोगिता: आर्थिक ठहराव और राजनीतिक अस्थिरता के कारण पाकिस्तान की सत्ता-व्यवस्था घरेलू वैधता के लिए भारत-विरोधी भावनाओं का उपयोग करती है।
- परमाणु प्रतिरोधक क्षमता (nuclear deterrence) से जोखिमपूर्ण व्यवहार को प्रोत्साहन: परमाणु हथियार पाकिस्तान के “उप-पारंपरिक” विकल्पों में विश्वास को बढ़ावा देते हैं। आतंकवाद को युद्ध का कृत्य घोषित करने वाली भारत की घोषणा का उद्देश्य इस संभावना को समाप्त करना है।
क्या भारत और पाकिस्तान के बीच सहयोग के कुछ क्षेत्र मौजूद हैं?
- मानवीय और धार्मिक कॉरिडोर : करतारपुर कॉरिडोर (2019) एक फंक्शनल पीपल-टू-पीपल पहल के तौर पर सामने आया है, जो सिख श्रद्धालुओं को बिना वीज़ा पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब के दर्शन की अनुमति देता है।
- सिंधु जल संधि का तंत्र: युद्धों के बावजूद, सिंधु जल संधि के तहत स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) की वार्षिक बैठकें जारी रहती हैं, जो नियम-आधारित ढाँचे में प्रभावी सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
- सीमित व्यापार और अनौपचारिक आदान–प्रदान: 2019 से औपचारिक व्यापार निलंबित है, लेकिन तीसरे देशों के माध्यम से अनौपचारिक व्यापार जारी है, जो दोनों देशों की आर्थिक परस्पर-निरर्भरता को दर्शाता है। आर्थिक सर्वेक्षण (2020–21) ने पहले यह भी रेखांकित किया था कि यदि द्विपक्षीय संबंध सुधरते हैं तो क्षेत्रीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
इस तनाव को कम करने की आवश्यकता क्यों है?
- परमाणु-सशस्त्र क्षेत्र में सामरिक स्थिरता: परमाणु हथियार संपन्न पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी हमले तनाव को बढ़ाने (escalation) के जोखिम को अत्यधिक बढ़ा देते हैं। भारत यह वैश्विक मान्यता चाहता है कि परमाणु शक्तियों के बीच राज्य-प्रायोजित आतंकवाद = तनाव बढ़ाने वाला ट्रिगर है, ताकि प्रमुख शक्तियाँ पाकिस्तान पर रोक लगाने के लिए दबाव बना सकें।
- आर्थिक और संपर्क (connectivity) की संभावनाएँ: विश्व बैंक के अनुसार दक्षिण एशिया विश्व के सबसे कम एकीकृत क्षेत्रों में से एक है। शांति स्थापित होने पर मध्य एशिया और पश्चिम एशिया तक सस्ते स्थल-मार्गों (land routes) का उपयोग संभव होगा, जिससे भारत के निर्यात लक्ष्यों को मजबूती मिलेगी।
- आंतरिक सुरक्षा और सीमा प्रबंधन: घुसपैठ और सीमा–पार हिंसा में कमी आने से सुरक्षा व्यय घटता है और सीमा राज्यों में विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
वैश्विक प्रतिष्ठा और कूटनीति
जैसे-जैसे भारत आर्थिक और कूटनीतिक रूप से उभर रहा है, स्थायी शांति उसे अनावश्यक व्यवधानों से बचाती है और क्षेत्र में एक स्थिर एवं नैतिक नेतृत्व के रूप में उसकी भूमिका को मजबूत करती है।
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