शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण

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शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण
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शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण

संदर्भ: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत उच्च शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय बनाने के प्रयास के तहत एक महत्वपूर्ण कदम में, ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (UNSW) बेंगलुरु में कैंपस स्थापित करने वाली सातवीं ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटी बनने वाली है।

भारत में विदेशी विश्वविद्यालय खुलने का महत्व:

उच्च रैंक वाले विदेशी विश्वविद्यालय जैसे UNSW का भारत में प्रवेश बहुआयामी महत्व रखता है:

  • शैक्षिक गुणवत्ता और विकल्पों में वृद्धि: यह भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र में वैश्विक पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ और अनुसंधान मानक लाता है, जिससे उच्च शिक्षा का समग्र स्तर ऊँचा होता है और भारतीय छात्रों को विदेश जाने के बिना विश्वस्तरीय विकल्प मिलते हैं।
  • विदेशी मुद्रा प्रवाह में कमी और शिक्षा को सस्ता बनाना: इससे भारतीय छात्रों द्वारा विदेशी शिक्षा पर खर्च होने वाले अरबों डॉलर की वार्षिक राशि में उल्लेखनीय कमी आ सकती है, क्योंकि विदेश में रहने के खर्चों से मुक्ति मिलने से अंतरराष्ट्रीय डिग्री अधिक किफायती हो जाती है।
  • अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहन: AI, क्वांटम और अंतरिक्ष जैसे घोषित संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं की तरह, ऐसी साझेदारियाँ निवेश आकर्षित करती हैं, भारतीय और वैश्विक प्रतिभाओं के बीच तालमेल की भावना जाग्रत करती हैं तथा भारत को वैश्विक अनुसंधान केंद्र के रूप में स्थापित करती हैं।
  • रोजगार क्षमता में वृद्धि: वैश्विक उद्योग संबंधी आवश्यकताओं (जैसे UNSW में डेटा साइंस, साइबरसिक्योरिटी) के अनुरूप डिग्रियाँ भारतीय स्नातकों के कौशल प्रोफाइल को मजबूत बनाती हैं, जिससे वे वैश्विक रोजगार बाजार में प्रतिस्पर्धी बनते हैं।
  • सामरिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर: गहन शैक्षिक एकीकरण द्विपक्षीय संबंधों (जैसे ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक साझेदारी) को मजबूत करता है तथा दीर्घकालिक लोगों-से-लोगों के संबंध बनाता है, जो पारस्परिक समझ और सद्भाव को प्रोत्साहन देता है।

यह भारत में “ब्रेन ड्रेन” को कैसे रोक सकता है?

विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसरों की स्थापना भारत में “ब्रेन ड्रेन” को कम करने का एक प्रभावी साधन बन सकती है, क्योंकि यह निम्न प्रकार से लाभ प्रदान करती है—

  • “ब्रेन गेन” के अवसर उत्पन्न करना: यह कदम उत्कृष्ट अंतर्राष्ट्रीय शिक्षकों और शोधकर्ताओं को भारत में कार्य करने के लिए आकर्षित करता है, जिससे बौद्धिक पूँजी के बाहर जाने की प्रक्रिया उलट सकती है।
  • देश के भीतर गुणवत्तापूर्ण विकल्प उपलब्ध कराना: वे प्रतिभाशाली भारतीय विद्यार्थी जो उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए विदेश जाते थे, अब देश में ही वैश्विक मान्यता प्राप्त डिग्रियाँ प्राप्त कर सकेंगे। इससे उनके भारत में बने रहने और भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान देने की संभावना बढ़ जाती है।
  • घरेलू शैक्षिक पारितंत्र को सुदृढ़ करना: विदेशी संस्थानों के साथ प्रतिस्पर्धा और सहयोग भारतीय विश्वविद्यालयों को अपने मानक सुधारने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे देश का शिक्षा तंत्र प्रतिभा को बनाए रखने के लिए अधिक आकर्षक बनेगा।
  • वैश्विक मान्यता प्राप्त स्थानीय शिक्षा केंद्र विकसित करना: UNSW बेंगलुरु जैसे परिसर उत्कृष्टता के ऐसे केंद्र बन सकते हैं जो भारतीय और अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों—दोनों—को आकर्षित करें, जिससे भारत शिक्षा सेवाओं और बौद्धिक प्रतिभा का शुद्ध आयातक बनने की दिशा में आगे बढ़ सके।

भारत में इन संस्थानों को किस प्रकार विनियमित किया जाता है?

भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों (एफएचईआई) का विनियमन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम, 2023 के तहत दिशानिर्देशों द्वारा नियंत्रित होता है। प्रमुख नियामक पहलुओं में शामिल हैं:

  • स्वीकृति प्रक्रिया: FHEIs को भारत में परिसर स्थापित करने के लिए UGC से स्वीकृति प्राप्त करनी होती है। इसके लिए संस्थान का वैश्विक शीर्ष 500 में स्थान होना चाहिए या अपने देश में प्रतिष्ठित संस्थान होना चाहिए।
  • पाठ्यक्रम एवं संचालन संबंधी स्वायत्तता: इन संस्थानों को प्रवेश मानदंड, शुल्क संरचना (जिसका “पारदर्शी और युक्तिसंगत” होना आवश्यक है) और पाठ्यक्रम निर्धारण में स्वायत्तता प्राप्त है। हालांकि, प्रदत्त डिग्री वही मान्यता रखेगी जो उस संस्थान द्वारा अपने मूल देश में प्रदान की जाने वाली डिग्री को प्राप्त होती है।
  • क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट: यह विनियम भारतीय परिसर और विदेशी मुख्य परिसर के बीच शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के निर्बाध आदान–प्रदान को प्रोत्साहित करते हैं।
  • लाभ आधारित संचालन: FHEIs को अधिशेष धनराशि को अपने देश भेजने (repatriate) की अनुमति है, जिससे भारत में परिसर स्थापित करना आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनता है।
  • गुणवत्ता आश्वासन: यद्यपि ये संस्थान स्वायत्त रूप से संचालित होते हैं, फिर भी वे भारत के सभी प्रासंगिक कानूनों के अधीन रहते हैं और अपने मूल परिसर के तुलनीय गुणवत्ता मानकों को बनाए रखना अनिवार्य है।

इसके साथ जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं—

  • वहनीयता और समानता सुनिश्चित करना: जब तक कि मजबूत छात्रवृत्ति प्रणालियाँ एकीकृत न की जाएँ तब तक उच्च शुल्क के कारण ये संस्थाएँ अभिजात वर्ग के लिए सीमित हो सकती हैं, जिससे शैक्षिक असमानता बढ़ सकती है
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक एकीकरण: पाठ्यक्रम को भारतीय संदर्भ के लिए प्रासंगिक बनाना जबकि वैश्विक मानकों को बनाए रखना आवश्यक है, तथा शुद्ध लेन-देन आधारित “शाखा परिसर” मॉडल से बचना महत्वपूर्ण है।
  • नियामक बाधाएँ और नौकरशाही: भारतीय नियामक प्रक्रियाओं, भूमि अधिग्रहण और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पार करना विदेशी संस्थाओं के लिए जटिल और समय लेने वाला हो सकता है।
  • घरेलू संस्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा: शीर्ष भारतीय निजी और सार्वजनिक विश्वविद्यालय छात्रों, संकाय सदस्यों और संसाधनों के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकते हैं, जिससे कमजोर संस्थाएँ अस्थिर हो सकती हैं।
  • संप्रभुता और शैक्षिक स्वतंत्रता: विदेशी संस्थानों की स्वायत्तता को भारतीय संवैधानिक मूल्यों, राष्ट्रीय हितों और सामाजिक संदर्भ के अनुपालन के साथ संतुलित करना एक संवेदनशील क्षेत्र है जिसमें सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता है।

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