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नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी
संदर्भ: श्रीलंका में चक्रवात “दितवा” से हुई भारी तबाही—जिसमें सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई और 20 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए—के मद्देनज़र भारत ने “ऑपरेशन सागर बंधु” शुरू किया है। इस अभियान के तहत भारतीय और श्रीलंकाई सेना के इंजीनियर मिलकर पारन्थन–करच्ची–मुल्लैटिवु (A35) रोड पर स्थित प्रमुख पुलों की मरम्मत कर रहे हैं, बेली ब्रिज स्थापित किए जा रहे हैं, तथा तमिलनाडु से हज़ारों टन राहत सामग्री श्रीलंका भेजी जा रही है।
भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी:
- यह भारत की विदेश नीति का एक केंद्रीय स्तंभ है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को प्राथमिकता देना है।
- यह इस समझ पर आधारित है कि भारत की सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि उसके पड़ोस में शांति और प्रगति से गहराई से जुड़ी हुई है।
- यह नीति पारस्परिक विश्वास बढ़ाने, क्षेत्रीय सहयोग में नेतृत्व प्रदान करने (विशेषकर सार्क और बिम्सटेक जैसे मंचों के माध्यम से), और संकट के समय उदार तथा गैर-परस्पर (non-reciprocal) सहायता उपलब्ध कराने पर बल देती है — जैसा कि चक्रवात दितवाह के दौरान दिखाई दिया।
- इसका उद्देश्य परस्पर लाभकारी साझेदारियों के माध्यम से संबंधों को मजबूत करना, बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप को संतुलित करना, व एक एकीकृत तथा समृद्ध क्षेत्र विकसित करना है।
भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के मुख्य सिद्धांत:
- विषम उत्तरदायित्व: क्षेत्र के सबसे बड़े देश के रूप में, भारत क्षेत्रीय स्थिरता, आपदा प्रतिक्रिया और बुनियादी ढांचा विकास के लिए अधिक जिम्मेदारी लेता है, और अक्सर तत्काल प्रतिफल की अपेक्षा किए बिना सहायता और ऋण प्रदान करता है।
- त्वरित मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR): इस नीति का मुख्य आधार यह है कि भारत क्षेत्रीय संकटों में “पहला प्रत्युत्तरकर्ता” बने। इसका उदाहरण 2004 की सुनामी, 2015 का नेपाल भूकंप, श्रीलंका में हालिया चक्रवात राहत कार्य तथा बांग्लादेश और म्यांमार में बार-बार होने वाली बाढ़ राहत पहल हैं।
- संपर्क-सुधार और विकास-साझेदारी: सड़क, पुल, बंदरगाह जैसे भौतिक संपर्क, डिजिटल संपर्क और ऊर्जा संपर्क को बढ़ाना। इसमें सीमा-पार रेल परियोजनाएँ, पाइपलाइनें और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहल शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर भारत-नेपाल सीमा-पार पेट्रोलियम पाइपलाइन तथा अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में चल रही अवसंरचना परियोजनाएँ उल्लेखनीय हैं।
- सुरक्षा सहयोग: आतंकवाद, उग्रवाद, मादक पदार्थों की तस्करी और समुद्री सुरक्षा जैसी अंतर्राष्ट्रीय (transnational) चुनौतियों पर सहयोग। इसके अंतर्गत खुफिया-साझा व्यवस्था, संयुक्त सैन्य अभ्यास और पड़ोसी देशों की सुरक्षा संस्थाओं की क्षमता-वृद्धि शामिल है।
- जन-केंद्रित संपर्क: लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए वीज़ा प्रावधानों में सहजता, सांस्कृतिक विनिमय, शैक्षिक छात्रवृत्तियाँ (जैसे ITEC कार्यक्रम) और चिकित्सा पर्यटन को प्रोत्साहन देना।
यह नीति किस प्रकार प्रभावी सिद्ध हुई है?
- सामरिक सद्भाव का निर्माण: संकट के समय निरंतर सहायता ने भारत के प्रति गहरा विश्वास और सद्भाव उत्पन्न किया है। इससे भारत की छवि एक विश्वसनीय और दयालु साझेदार के रूप में मजबूत हुई है। यह बात 2014 के जल संकट के दौरान मालदीव से और 2022 के आर्थिक संकट और वर्तमान चक्रवात राहत के दौरान श्रीलंका से व्यक्त की गई हार्दिक प्रशंसा से स्पष्ट थी।
- सामरिक प्रतिद्वंद्विता का संतुलन: यह नीति क्षेत्र में अन्य शक्तियों—विशेषकर चीन—के प्रभाव को संतुलित करने में महत्वपूर्ण रही है। भारत द्वारा दिया गया सहयोग कम ऋण-निर्भर (less debt-heavy) और तत्काल आवश्यकताओं के प्रति अधिक उत्तरदायी माना जाता है। कई परियोजनाएँ सीधे चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के विकल्प के रूप में देखी जाती हैं।
- क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा: आपदा प्रबंधन और आर्थिक सहायता के माध्यम से भारत पड़ोसी देशों को राजनीतिक अस्थिरता और राज्य-अपकर्ष (state failure) से बचाने में सहायता करता है। यह भारत की अपनी सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- आर्थिक एकीकरण को प्रोत्साहन: इसने संपर्क-सुधार और व्यापार समझौतों ने क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ाया है। इससे भारतीय व्यवसायों को लाभ होता है और एक दूसरे पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएँ विकसित होती हैं। बांग्लादेश–भूटान–भारत–नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता इसका प्रमुख उदाहरण है।
- सॉफ्ट पावर का विस्तार: यह नीति चिकित्सा अभियानों (जैसे कैंडी में वर्तमान फील्ड अस्पताल), शैक्षिक गतिविधियों और सांस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से भारत की सॉफ्ट पावर को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित करती है, जिससे दीर्घकालिक कूटनीति के लिए अनुकूल वातावरण बनता है।
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