भारत में प्राकृतिक कृषि: महत्व, चुनौतियाँ, सरकारी पहल और सर्वोत्तम प्रथाएँ (2025)
भारत में प्राकृतिक कृषि क्या है? इसके सिद्धांत, महत्व, मृदा स्वास्थ्य सुधार, जलवायु अनुकूलता, कम लागत वाली खेती, और खाद्य सुरक्षा पर इसके लाभ जानें। NMNF, PM-KISAN, जैव-इनपुट केंद्र, और वैश्विक-भारतीय सर्वोत्तम प्रथाओं सहित सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण पढ़ें।
भारत में प्राकृतिक कृषि:
दक्षिण भारत नेचुरल फार्मिंग समिट 2025 जिसका आयोजन कोयंबटूर में हुआ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि भारत प्राकृतिक कृषि के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने की राह पर है। उन्होंने अत्यधिक रासायनिक इनपुट से क्षतिग्रस्त भूमि को पुनर्जीवित करने की तात्कालिक आवश्यकता पर बल दिया। इस अवसर पर उन्होंने पीएम-किसान योजना की 21वीं किस्त भी जारी की, जिसके अंतर्गत किसानों के खाते में 18,000 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए गए।
प्राकृतिक कृषि:
- परिभाषा: प्राकृतिक कृषि एक समग्र कृषि पद्धति है जिसमें कृत्रिम उर्वरकों, कीटनाशकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों का उपयोग नहीं किया जाता है।
- सिद्धांत: यह स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों जैसे गाय के गोबर, गौमूत्र, कम्पोस्ट, जैव उर्वरकों, पलवार, फसल चक्रीकरण और मिश्रित फसलों पर आधारित होती है।
- पद्धति: प्राकृतिक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं के साथ काम करने वाली यह पद्धति मृदा की उर्वरता, जैव विविधता और सहनशीलता को बढ़ाती है।
- इसके उदाहरणों में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF), ऋषि कृषि, और वैज्ञानिक जी. नममल्वर द्वारा प्रेरित जैविक कृषि पद्धतियाँ शामिल हैं।
इसकी आवश्यकता:
- मृदा स्वास्थ्य का पुनरुद्धार: दशकों तक रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग से मृदा की संरचना और उर्वरता प्रभावित हुई है; प्राकृतिक कृषि जैविक कार्बन और मृदा सूक्ष्मजीव जीवन को पुनःस्थापित कर सकती है।
- इनपुट लागत में कमी: खेत में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके और खरीदे गए कृत्रिम इनपुट पर निर्भरता कम करके, प्राकृतिक कृषि लागत घटाने में सहायता करती है।
- जलवायु अनुकूलता: प्राकृतिक कृषि की पद्धतियाँ मृदा की जल धारण क्षमता बढ़ाती हैं, जिससे खेत सूखे या बाढ़ जैसी परिस्थितियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनते हैं।
- स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा: रासायन-मुक्त उपज कीटनाशकों के जोखिम को कम करती है; प्राकृतिक कृषि सुरक्षित और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन को बढ़ावा देती है।
- जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य: विविध फसल प्रणाली और पशुपालन का समावेश कृषि भूमि में जैव विविधता को प्रोत्साहन देता है।
- परंपरागत ज्ञान का पुनरुद्धार: प्राकृतिक कृषि स्थानीय रूप से प्रयुक्त पारंपरिक पद्धतियों (जैसे पंचगव्य, मल्चिंग) का पुनर्मूल्यांकन करती है और उन्हें विज्ञान के साथ एकीकृत करती है।
इससे जुड़ी मुख्य चिंताएं:
- संक्रमण अवधि: पारंपरिक कृषि से प्राकृतिक कृषि में संक्रमण करने में समय लगता है; मिट्टी में कार्बन की मात्रा, स्थानीय पारिस्थितिकी और प्राचीन कृषि पद्धतियाँ इस प्रक्रिया की गति को प्रभावित करती हैं।
- इनपुट उपलब्धता: किसानों को जैव इनपुट (जैसे जीवामृत, बीजामृत) आसानी से उपलब्ध होना चाहिए—जिसके लिए जैव-इनपुट संसाधन केन्द्रों की आवश्यकता है।
- प्रमाणीकरण और बाज़ार संबंध: रासायन-मुक्त उपज के लिए विश्वसनीय प्रमाणीकरण और ब्रांड की आवश्यकता होती है ताकि किसान उसे उच्च मूल्य पर बेच सकें;वर्तमान में सभी किसान इस प्रणाली से जुड़े नहीं हैं।
- कैपेसिटी बिल्डिंग: वृहद पैमाने पर इसके अभिग्रहण हेतु प्रशिक्षण (कृषि विज्ञान केंद्र, मॉडल फार्म, मास्टर ट्रेनर) की आवश्यकता है।
- स्केल और फंडिंग: इस मिशन का दायरा (1 करोड़ किसान, 7.5 लाख हेक्टेयर) महत्वाकांक्षी है और इसके लिए सतत वित्तीय सहायता और समर्थन की आवश्यकता है।
इन चिंताओं को दूर करने के लिए किये गए प्रयास:
- नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग (NMNF): इसे देशभर में प्राकृतिक कृषि के अभ्यास को व्यापक रूप से अपनाने के लिए शुरू किया गया है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करना, जैव-इनपुट को प्रोत्साहन देना और CETARA-NF जैसे प्रमाणीकरण मॉडलों के माध्यम से विश्वसनीयता सुनिश्चित करना शामिल है।
- PM-KISAN को प्रत्यक्ष समर्थन: किसानों के खातों में सीधे ₹4 लाख करोड़ से अधिक हस्तांतरित किए जा चुके हैं, जिसमें हाल की किस्तें (₹18,000 करोड़) प्राकृतिक कृषि के तरीकों को अपनाने के समर्थन के लिए आवंटित की गई हैं।
- विज्ञान-सम्मत संचार: प्रधानमंत्री मोदी ने प्राकृतिक कृषि को पूरी तरह से प्रमाण आधारित अभ्यास बनाने पर बल दिया, जिसमें कृषि वैज्ञानिकों, स्टार्टअप्स और नवप्रवर्तकों को शामिल करके विश्वसनीयता मजबूत की जा रही है।
- जागरूकता और किसान प्रशिक्षण: दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि सम्मेलन तथा कृषि विज्ञान केंद्र जैसे प्लेटफ़ॉर्म किसानों को पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और आच्छादन जैसी पद्धतियों के आधार पर प्रशिक्षण देते हैं, जो मृदा के स्वास्थ्य को सुधारने और इनपुट लागत कम करने में सहायक हैं।
- बजटीय प्रोत्साहन तथा नीतिगत एकीकरण: केंद्रीय बजट 2024–25 में एक करोड़ किसानों के बीच प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहन देने, जैव-इनपुट संसाधन केंद्रों की स्थापना और जलवायु-सहिष्णु फसल रणनीतियों के साथ एकीकरण को उजागर किया गया।
- मृदा स्वास्थ्य और प्रमाणीकरण: मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी योजनाओं तथा किसान-उत्पादक संगठन (FPOs) को प्राकृतिक कृषि के साथ संरेखित किया जा रहा हैं, ताकि ट्रेसबिलिटी, गुणवत्ता आश्वासन और बाजार तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
भारत में प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहन देने और सुधारने हेतु अनेक सर्वोत्तम पद्धतियाँ अपनाई जा सकती हैं:
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वैश्विक प्रथाएँ:
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- लैटिन अमेरिका के एग्रोइकोलॉजी नेटवर्क: यहाँ किसान-से-किसान तक ज्ञान के साझाकरण, सहभागी प्रमाणन और समुदाय बीज बैंक जैसे माधयमों का प्रयोग किया जा रहा है।
- ओशिनिया में पर्माकल्चर: इसका लक्ष्य खेतों को ऐसे स्वचालित पारिस्थितिक तंत्र के रूप में डिज़ाइन करना है जिसमें जल संचयन, मिश्रित कृषि, और बारहमासी पौधों का समावेश होता है।
- EU ग्रीन डील और फार्म टू फोर्क रणनीति: 2030 तक कृषि भूमि को 25% जैविक या प्राकृतिक कृषि के अंतर्गत लाने का लक्ष्य रखा गया है, जो सब्सिडी तथा प्रमाणन प्रणालियों द्वारा समर्थित है।
- जैव उर्वरकों के लिए अफ़्रीका की पहल: यहाँ कम्पोस्ट, बायोचार और सूक्ष्मजीव इनोकुलम का उपयोग कर क्षतिग्रस्त मृदा की मरम्मत और आयात पर निर्भरता को कम किया जा रहा है।
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भारतीय पद्धतियाँ:
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- आंध्र प्रदेश में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF): इस पहल को गोबर, गौमूत्र और जैव-इनपुट का उपयोग करके वृहद पैमाने पर अपनाया जा रहा है; इसे राज्य नीति और किसान प्रशिक्षण द्वारा समर्थन प्रदान किया जा रहा है।
- सिक्किम का 100% जैविक कृषि मॉडल: सिक्किम पहला पूर्ण जैविक राज्य है, जो दिखाता है कि प्रमाणीकरण, ब्रांडिंग और पर्यटन के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है।
- राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (NMNF): यह मिशन 2024 में लॉन्च किया गया था, जिसमें प्राकृतिक इनपुट, फसल विविधीकरण, और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने को प्रोत्साहन दिया गया है।
- तमिलनाडु में बाजरा-केंद्रित प्राकृतिक कृषि: 35,000 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक कृषि अपनाई गई है, जिसमें जलवायु-सहिष्णु अनाजों पर विशेष संकेन्द्रण है।
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