हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभुत्व

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हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभुत्व
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हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभुत्व

हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव, उसकी रणनीति, ऊर्जा सुरक्षा, मलक्का दुविधा, नौसैनिक विस्तार और भारत द्वारा अपनाए गए कूटनीतिक, सैन्य तथा क्षेत्रीय उपायों का विस्तृत विश्लेषण। इंडो-पैसिफिक की बदलती भू-राजनीति को समझने के लिए महत्वपूर्ण लेख।

हिंद महासागर में चीन का प्रभुत्व: कारण, महत्व और भारत की प्रतिक्रिया

हिंद-प्रशांत 21वीं सदी की भू-राजनीति का केंद्रीय क्षेत्र बन गया है, और चीन इसकी गतिशीलता को आकार देने में सबसे आगे है। प्रशांत क्षेत्र में प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा से भिन्न, बीजिंग भारतीय महासागर में एक दीर्घकालिक रणनीति अपनाते हुए अपनी सामरिक उपस्थिति का विस्तार, नौसैनिक शक्ति-सन्निवेश को सुदृढ़ करने तथा क्षेत्रीय सहयोग को अपने अनुकूल शर्तों पर संरूपित करने हेतु त्रिआयामी, जटिल नीति-दृष्टिकोण का अनुसरण कर रहा है।

हिंद महासागर क्षेत्र का क्या महत्व है?

वैश्विक स्तर पर हिंद महासागर क्षेत्र सामरिक एवं आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • आर्थिक जीवनरेखा: यह एक प्रमुख समुद्री व्यापार मार्ग है। विश्व के लगभग 80% समुद्री तेल व्यापार तथा व्यापक वैश्विक वाणिज्यिक शिपिंग इसी से होकर संपादित होती है। मलक्का जलडमरूमध्य, हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य तथा बाब-अल-मंदेब जैसे समुद्री संचार मार्ग (SLOCs) के संकीर्ण बिंदु इसका अभिन्न भाग हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: हिंद महासागर क्षेत्र की सीमा मध्य पूर्व और अफ्रीका के ऊर्जा संपन्न देशों से लगती है, जिसके कारण यह वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति, विशेष रूप से चीन और भारत जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्राथमिक मार्ग है।
  • सामरिक प्रभुत्व: हिंद महासागर क्षेत्र पर नियंत्रण या प्रभाव किसी भी देश को अपनी शक्ति प्रदर्शित करने, अपने व्यापार मार्गों की रक्षा करने और प्रतिद्वंद्वियों की गतिविधियों पर नज़र रखने का अवसर प्रदान करता है। प्रमुख शक्तियों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में इसकी केंद्रीय भूमिका के कारण इसे प्रायः “21वीं सदी का युद्धक्षेत्र” कहा जाता है।
  • समुद्री संसाधन: यह क्षेत्र जीवित एवं अजैविक संसाधनों— जैसे समुद्री मत्स्य संसाधन तथा समुद्रतल खनिज— से समृद्ध है, जिसके कारण नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) तटीय देशों के लिए उभरती हुई प्राथमिकता बनती जा रही है।

चीन हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) तक रास्ता और पहुँच क्यों चाहता है?

IOR में चीन के हित घरेलू ज़रूरतों और बाहरी महत्वाकांक्षाओं के मेल से चलते हैं:

  • ऊर्जा जीवनरेखाओं की सुरक्षा (घरेलू हित): चीन विश्व का सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक है तथा उसके लगभग 80% कच्चे तेल का आयात मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से भारतीय महासागर से होकर गुजरता है। अतः ऊर्जा आधारित समुद्री संचार मार्गों (Energy SLOCs) की सुरक्षा उसके राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
  • “मलक्का दुविधा” का समाधान: मलक्का जलडमरूमध्य में किसी भी प्रकार की नाके़बंदी या अवरोध चीन की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इसलिए IOR में स्थायी समुद्री उपस्थिति चीन को जोखिम विविधीकरण और आपूर्ति शृंखलाओं की सुरक्षा प्रदान करती है।
  • वैश्विक शक्ति के रूप में उदय: क्षेत्रीय से वैश्विक शक्ति बनने की प्रक्रिया में चीन के लिए IOR में प्रभावी एवं निर्णायक उपस्थिति आवश्यक है। इससे वह अमेरिका, भारत तथा अन्य शक्तियों के प्रभाव का प्रत्युत्तर दे सकता है तथा स्वयं को क्षेत्रीय व्यवस्था का निर्माता सिद्ध कर सकता है।
  • सामरिक व्यापकता का विस्तार: पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में चीन को अमेरिकी गठबंधन नेटवर्क (जापान, दक्षिण कोरिया, फ़िलिपींस आदि) द्वारा घेराबंदी का सामना करना पड़ता है। भारतीय महासागर में प्रभाव बढ़ाना चीन को सामरिक विस्तार प्रदान करता है तथा इससे भारत को घेरने की रणनीति को भी बल मिलता है।

क्षेत्र में चीनी प्रभाव को रोकने के लिए भारत द्वारा क्या उपाय किए गए हैं?

चीन के अतिक्रमण के जवाब में भारत ने कूटनीति, सैन्य रुख और क्षेत्रीय पहल पर ध्यान केंद्रित करते हुए बहुआयामी रणनीति अपनाई है:

  • कूटनीति और साझेदारियाँ

      • एक्ट ईस्ट नीति: भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तथा वियतनाम, सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख IOR तटीय राज्यों के साथ रणनीतिक एवं आर्थिक संबंधों के सुदृढ़ीकरण पर बल दे रहा है।
      • क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वाड): भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी इंडो-पैसिफ़िक सुनिश्चित करने हेतु साझेदारी कर रहा है, जो चीन के प्रभाव को रणनीतिक संतुलन प्रदान करती है।
      • अवसंरचना विकास: भारत बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव जैसे पड़ोसी देशों को विकास परियोजनाओं और ऋण सहायता प्रदान कर चीन-समर्थित वित्तपोषण के व्यवहार्य विकल्प उपलब्ध करा रहा है। (उदाहरण: मालदीव में ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना)
  • भारत के सैन्य और सुरक्षा सुदृढ़ीकरण के प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:

      • मिलिट्री मॉडर्नाइज़ेशन: भारत अपने प्राथमिक सामरिक समुद्री क्षेत्र में नौसैनिक प्रभुत्व बनाए रखने हेतु पनडुब्बियों, विमानवाहक पोतों एवं युद्धपोतों जैसे साधनों के माध्यम से नौसैनिक क्षमताओं का निरंतर विस्तार कर रहा है।
      • अंडमान और निकोबार कमांड: भारत इन द्वीपों को एक महत्वपूर्ण त्रि-सेवा कमान के रूप में विकसित कर रहा है, जिससे मलक्का जलडमरूमध्य जैसे सामरिक चोक-पॉइंट की निगरानी एवं नियंत्रण को सुदृढ़ किया जा सके।
      • सुरक्षा एवं क्षमता निर्माण: भारत संयुक्त सैन्य अभ्यास (जैसे — मालाबार: अमेरिका और जापान के साथ), तथा IOR देशों को सागरीय निगरानी और सुरक्षा सहायता प्रदान कर क्षमता-वृद्धि को प्रोत्साहित कर रहा है।
  • क्षेत्रीय पहल:

    • SAGAR (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन): आईओआर के लिए भारत की प्रमुख नीति, सहयोगात्मक सुरक्षा, सतत विकास और पारदर्शी, गैर-शिकारी दृष्टिकोण पर बल देती है।
    • इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA): भारत IORA में अग्रणी भूमिका निभाते हुए समुद्री सुरक्षा, सुरक्षा सहयोग, तथा नीली अर्थव्यवस्था के संवर्धन हेतु क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ कर रहा है।


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