असम का बहुविवाह विरोधी विधेयक 2025 -कानूनी प्रावधान, प्रमुख मुद्दे और प्रभाव
असम बहुविवाह विरोधी विधेयक 2025 बहुविवाह को अपराध घोषित करते हुए 10 वर्ष तक की सज़ा, जुर्माना, अयोग्यता और पीड़ितों के लिए मुआवज़ा प्रदान करता है। जानिए बहुविवाह क्या है, भारत में इसका कानूनी ढांचा, विधेयक के प्रावधान, अपवाद, सामाजिक प्रभाव और इससे जुड़े प्रमुख विवाद।
असम का बहुविवाह विरोधी विधेयक 2025
असम सरकार ने राज्य विधानसभा में असम बहुविवाह निषेध विधेयक, 2025 पेश किया, जिसमें बहुविवाह करने पर 10 वर्ष तक के कारावास सहित कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
बहुविवाह क्या है?
बहुविवाह एक ऐसी वैवाहिक प्रथा है जिसमें एक व्यक्ति के एक साथ एक से अधिक जीवनसाथी होते हैं। इसके मुख्य प्रकार हैं:
- बहुपत्नीत्व/पोलीगायनी: यह एक वैवाहिक संरचना है जिसमें एक पुरुष की कई पत्नियाँ होती हैं। इस रूप में बहुविवाह अधिक सामान्य है।
- बहुपतित्व प्रथा/पॉलिएंड्री: यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें एक महिला के कई पति होते हैं। ऐसी घटनाएँ अत्यंत असामान्य हैं।
- सामूहिक विवाह: इस प्रकार के विवाह में एकाधिक पति और एकाधिक पत्नियाँ होती हैं।
- असम विधेयक विशेष रूप से बहुविवाह को लक्षित करता है, जो भारत में कुछ समुदायों में प्रचलित है।
भारत में यह कैसे किया जाता है?
भारत में बहुविवाह की वैधता मुख्य रूप से व्यक्ति के धर्म द्वारा निर्धारित होती है, क्योंकि विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होता है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ:मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन अधिनियम, 1937 के अनुसार, एक मुसलमान पुरुष को—धार्मिक सिद्धांतों के तहत सभी पत्नियों के प्रति समान न्याय व व्यवहार की शर्त पर—अधिकतम चार पत्नियाँ रखने की अनुमति है।
- हिंदू, ईसाई और पारसी कानून: हिंदुओं (हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत), ईसाइयों (इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 के तहत), और पारसियों (पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट, 1936 के तहत) के लिए एक से अधिक विवाह करना अवैध एवं गैर-कानूनी है।
- पहले विवाह के चलते दूसरा विवाह करना अमान्य है और भारतीय दंड संहिता (धारा 494) के तहत दंडनीय है।
- विशेष छूट: भारत भर में जनजातीय समुदाय, जिनमें छठी अनुसूची क्षेत्रों के अंतर्गत रहने वाले असम के लोग भी शामिल हैं, प्रायः ऐसे समान नागरिक संहिताओं से मुक्त होते हैं और विवाह के संबंध में अपने स्वयं के प्रथागत कानूनों का पालन कर सकते हैं।
बहुविवाह से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ
बहुविवाह की प्रथा को सामाजिक, कानूनी और लैंगिक—तीनों आधारों पर व्यापक रूप से आलोचना का सामना करना पड़ा है। प्रमुख चिंताएँ इस प्रकार हैं—
- लैंगिक असमानता: इसे ऐसी प्रथा माना जाता है जो स्त्रियों के अधीनस्थ स्थान को संस्थागत रूप देती है। यह स्त्रियों को मानो “संपत्ति” की तरह देखकर उनकी गरिमा और समानता के अधिकार को क्षति पहुँचाती है।
- सामाजिक हानि: ऐसे विवाहों से महिलाओं और बच्चों में भावनात्मक और आर्थिक असुरक्षा उत्पन्न हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप प्रायः परिवार बिखर जाते हैं और आंतरिक कलह उत्पन्न हो जाती है।
- कानूनी जटिलताएं: उत्तराधिकार, भरण-पोषण और बाद के विवाहों से उत्पन्न बच्चों की कानूनी स्थिति के मुद्दे जटिल और विवादित हो सकते हैं।
- शोषण: आलोचकों का तर्क है कि इसका उपयोग धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में महिलाओं का शोषण करने के लिए किया जा सकता है।
असम में पेश बहुविवाह विरोधी विधेयक के प्रावधान:
असम बहुविवाह निषेध विधेयक, 2025, इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करने के लिए एक कठोर रूपरेखा का प्रस्ताव करता है:
- दोषी व्यक्ति के लिए सज़ा: बहुविवाह करने पर 7 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति पूर्व-विवाह की जानकारी छिपाकर दूसरा विवाह करता है, तो दंड बढ़ाकर 10 वर्ष तक किया जा सकता है।
- उकसाने या सहयोग करने वालों के लिए दंड: ऐसे विवाह संपन्न कराने वाले धार्मिक पुरोहित या क़ाज़ी को 2 वर्ष तक के कारावास और अधिकतम ₹1.5 लाख के जुर्माने का दंड दिया जा सकता है। गाँव के मुखिया, माता-पिता अथवा विधिक अभिभावक—जो इस विवाह में भाग लेते हैं या उससे संबंधित जानकारी छिपाते हैं—उन्हें भी 2 वर्ष तक के कारावास और अधिकतम ₹1 लाख जुर्माने का प्रावधान है।
- अयोग्यता: इस कानून के तहत दोषसिद्ध व्यक्ति को सरकारी नौकरियों, राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं तथा असम में किसी भी निर्वाचन में प्रत्याशी बनने से अयोग्य घोषित किया जाएगा।
- पीड़ितों के लिए मुआवज़ा: विधेयक में बहुविवाह की स्थिति में प्रभावित स्त्रियों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
- अपवाद: यह कानून राज्य की अनुसूचित जनजातियों तथा संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत शासित क्षेत्रों (बोड़ोलैंड टेरिटोरियल रीजन, दीमा हसाओ, कार्बी आंगलोंग और वेस्ट कार्बी आंगलोंग) पर लागू नहीं होगा।
विधेयक से जुड़े प्रमुख मुद्दे:
इस विधेयक ने महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है और कई जटिल मुद्दे उठाए हैं:
- संघीय ढाँचा बनाम व्यक्तिगत कानून: विवाह संविधान की समवर्ती सूची का विषय है, परंतु इसे प्रायः व्यक्तिगत कानूनों के अधीन माना जाता है। ऐसे में राज्य विधायिका द्वारा इस क्षेत्र में कानून बनाना उसकी विधायी क्षमता को लेकर कानूनी चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
- जनजातीय समुदायों को दिया गया अपवाद: अनुसूचित जनजातियों (STs) को व्यापक रूप से दी गई छूट की आलोचना यह कहकर की गई है कि यह राजनीतिक दृष्टि से लाभकारी कदम है, जिससे राज्य के भीतर कानून का अनुप्रयोग असमान हो जाता है। सरकार का तर्क है कि इससे जनजातीय परंपराओं का सम्मान होता है और संभावित संघर्ष टाला जा सकता है, लेकिन इससे प्रश्न उठता है कि सभी महिलाओं को समान कानूनी संरक्षण कैसे मिलेगा।
- राजनीतिक और सामाजिक ध्रुवीकरण: कई लोगों के दृष्टिकोण से यह विधेयक विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को लक्ष्य बनाता है, जिससे सामाजिक विभाजन और गहरा हो सकता है। वहीं सत्तारूढ़ पक्ष इसे महिला सशक्तिकरण और लैंगिक न्याय की दिशा में उठाया गया कदम बताता है।
- कार्यान्वयन से जुड़े चुनौतियाँ: प्रवर्तन के लिए मौजूदा विवाहों का सावधानीपूर्वक दस्तावेज़ीकरण आवश्यक होगा, जो मुश्किल हो सकता है। इससे कम रिपोर्टिंग भी हो सकती है या यह प्रथा गुप्त रूप से चल सकती है।
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