महाराष्ट्र के ताप विद्युत संयंत्रों में बांस आधारित बायोमास अनिवार्य

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महाराष्ट्र के ताप विद्युत संयंत्रों में बांस आधारित बायोमास अनिवार्य

महाराष्ट्र के ताप विद्युत संयंत्रों में बांस आधारित बायोमास अनिवार्य

संदर्भ: महाराष्ट्र ने दिसंबर 2025 में सभी सरकारी और निजी ताप विद्युत संयंत्रों के लिए कोयले के साथ 5–7% बांस-आधारित बायोमास या चारकोल का मिश्रण को अनिवार्य कर दिया । यह पहली बार है जब बांस को औपचारिक रूप से राज्य की ऊर्जा संरचना में शामिल किया गया है। इस पहल का उद्देश्य बांस-आधारित जैव-ऊर्जा को बढ़ावा देना और उत्सर्जन को कम करना है, जिसके लिए सरकार ने एक महत्वपूर्ण वित्तीय प्रावधान भी किया है।

बायोमास ऊर्जा:एक परिचय

  • बायोमास ऊर्जा वह नवीकरणीय ऊर्जा है जो पौधों, कृषि अवशेषों, वानिकी अपशिष्ट और पशु अपशिष्ट जैसी जैविक सामग्रियों से प्राप्त होती है।
  • इन सामग्रियों को जलाकर या प्रसंस्करण द्वारा ऊष्मा, विद्युत या जैव-ईंधन के रूप में ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
  • बायोमास को कार्बन-न्यूट्रल माना जाता है क्योंकि दहन के दौरान उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को पौधों द्वारा उनके विकास के समय अवशोषित किया गया होता है, जिससे यह संतुलित हो जाता है।

बायोमास ऊर्जा के प्रमुख घटक:

  • लकड़ी और वानिकी अवशेष : लकड़ी के कुंदे, बुरादा, छाल, और वानिकी अपशिष्ट। 
  • कृषि अपशिष्ट : फसल के तने, भूसी, खोल और पुआल।
  • पशु जनित अपशिष्ट: गोबर और खाद, जिनका उपयोग बायोगैस उत्पादन में किया जाता है ।
  • नगर पालिका का ठोस अपशिष्ट (जैविक भाग): घरों से निकलने वाला जैव-विघटनीय अपशिष्ट। 
  • ऊर्जा फसलें: बांस, गन्ना और स्विचग्रास जैसे तेजी से बढ़ने वाले पौधे, जिन्हें विशेष रूप से ऊर्जा के लिए उगाया जाता है।
  • बायोचार और पेलेट्स: औद्योगिक बॉयलरों में कुशल दहन के लिए प्रसंस्कृत जैवभार। 

यह क्यों आवश्यक है:

  • कार्बन न्यूनीकरण: यह जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करता है और पूरी जीवन चक्र उत्सर्जन को घटाता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: यह एक स्थानीय और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: यह कृषि और वानिकी अवशेषों का उपयोग करता है, जो अन्यथा प्रदूषण का कारण बन सकते हैं (जैसे पराली जलाना)।
  • ग्रामीण आजीविका: खेती, संग्रहण, प्रसंस्करण और वितरण में रोजगार सृजित करता है।
  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ: यह भारत को नेट-ज़ीरो 2070 लक्ष्य और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करता है।
  • ग्रिड एकीकरण: कोयला संयंत्रों में जैवभार को बुनियादी अवसंरचना में बिना किसी बदलाव के सह-दहन किया जा सकता है।

बांस का महत्व:

  • त्वरित वृद्धि: बांस सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले पौधों में से एक है, जो अधिक संसाधनों के बिना जल्दी पुनर्जीवित होने की क्षमता रखता है। 
  • कार्बन अवशोषण: यह बड़ी मात्रा में CO₂ अवशोषित करता है, मृदा की गुणवत्ता सुधारता है और अपरदन को रोकता है।
  • बहुउपयोगिता: बांस का उपयोग बायोमास पेलेट्स, बायोचार, चारकोल, कागज़, फर्नीचर और निर्माण कार्य में किया जा सकता है।
  • कम इनपुट की ज़रूरत: बांस इमारती लकड़ी की तुलना में अपक्षयी (क्षतिग्रस्त) मृदा पर भी न्यूनतम जल और उर्वरक के साथ उग सकता है।
  • “ग्रीन गोल्ड”: बांस न केवल पर्यावरणीय लाभ प्रदान करता है बल्कि आर्थिक अवसरों का भी स्रोत है।

बायोमास ऊर्जा उत्पादन हेतु बांस का इस्तेमाल करने के लिए क्या पहल की गई है?

  • महाराष्ट्र बांस उद्योग नीति, 2025: 
  • सभी ताप विद्युत संयंत्रों में 5–7% बांस बायोमास मिश्रण अनिवार्य है ।
    • ₹1,534 करोड़ का वित्तीय प्रावधान (2025–2030) और 20 वर्षों में ₹11,797 करोड़ के प्रोत्साहन निर्धारित।
    • इसके लिए अनुमानित 5 लाख रोजगार सृजित करने तथा बांस-आधारित औद्योगिक क्लस्टर्स को उत्प्रेरित करने की उम्मीद है।
  • नेशनल बायोमास को-फायरिंग नीति: भारत का व्यापक प्रयास, जिसमें कोयला संयंत्रों में बायोमास के हिस्से को बढ़ाना शामिल है। महाराष्ट्र में इसे बांस विशेष रूप से लागू किया जा रहा है।
  • जिला-स्तर के केंद्र: गढ़चिरौली, चंद्रपुर, सतारा, कोल्हापुर और नासिक को बांस उत्पादन केंद्रों के रूप में पहचाना गया।
  • कार्बन क्रेडिट मार्केट : महाराष्ट्र का लक्ष्य ग्लोबल ग्रीन इन्वेस्टमेंट को आकर्षित करने के लिए बांस-आधारित कार्बन क्रेडिट को औपचारिक बनाना है।
  • अन्य राज्यों के प्रयास : उत्तर-पूर्व भारत में राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत बांस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। बांस का उपयोग बायोचार परियोजनाओं में मृदा की उर्वरता बढ़ाने और कार्बन अवशोषण हेतु किया जा रहा है।

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